नाम-वन्दना #RamcharitManas #मानसगान

Published 2021-03-08
बालकाण्ड प्लेलिस्ट
   • रामचरितमानस गायन (बालकाण्ड)  

बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥1॥
भावार्थ:-मैं श्री रघुनाथजी के नाम 'राम' की वंदना करता हूँ, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात्‌ 'र' 'आ' और 'म' रूप से बीज है। वह 'राम' नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है। वह वेदों का प्राण है, निर्गुण, उपमारहित और गुणों का भंडार है॥1॥
*महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥
महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥2॥
भावार्थ:-जो महामंत्र है, जिसे महेश्वर श्री शिवजी जपते हैं और उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है तथा जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं, जो इस 'राम' नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं॥2॥
* जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू॥
सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेईं पिय संग भवानी॥3॥
भावार्थ:-आदिकवि श्री वाल्मीकिजी रामनाम के प्रताप को जानते हैं, जो उल्टा नाम ('मरा', 'मरा') जपकर पवित्र हो गए। श्री शिवजी के इस वचन को सुनकर कि एक राम-नाम सहस्र नाम के समान है, पार्वतीजी सदा अपने पति (श्री शिवजी) के साथ राम-नाम का जप करती रहती हैं॥3॥
* हरषे हेतु हेरि हर ही को। किय भूषन तिय भूषन ती को॥
नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को॥4॥
भावार्थ:-नाम के प्रति पार्वतीजी के हृदय की ऐसी प्रीति देखकर श्री शिवजी हर्षित हो गए और उन्होंने स्त्रियों में भूषण रूप (पतिव्रताओं में शिरोमणि) पार्वतीजी को अपना भूषण बना लिया। (अर्थात्‌ उन्हें अपने अंग में धारण करके अर्धांगिनी बना लिया)। नाम के प्रभाव को श्री शिवजी भलीभाँति जानते हैं, जिस (प्रभाव) के कारण कालकूट जहर ने उनको अमृत का फल दिया॥4॥
दोहा :
* बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास।
राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास॥19॥
भावार्थ:-श्री रघुनाथजी की भक्ति वर्षा ऋतु है, तुलसीदासजी कहते हैं कि उत्तम सेवकगण धान हैं और 'राम' नाम के दो सुंदर अक्षर सावन-भादो के महीने हैं॥19॥
चौपाई :
* आखर मधुर मनोहर दोऊ। बरन बिलोचन जन जिय जोऊ॥
ससुमिरत सुलभ सुखद सब काहू। लोक लाहु परलोक निबाहू॥1॥
भावार्थ:-दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं, जो वर्णमाला रूपी शरीर के नेत्र हैं, भक्तों के जीवन हैं तथा स्मरण करने में सबके लिए सुलभ और सुख देने वाले हैं और जो इस लोक में लाभ और परलोक में निर्वाह करते हैं (अर्थात्‌ भगवान के दिव्य धाम में दिव्य देह से सदा भगवत्सेवा में नियुक्त रखते हैं।)॥1॥
* कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके। राम लखन सम प्रिय तुलसी के॥
बरनत बरन प्रीति बिलगाती। ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती॥2॥
भावार्थ:-ये कहने, सुनने और स्मरण करने में बहुत ही अच्छे (सुंदर और मधुर) हैं, तुलसीदास को तो श्री राम-लक्ष्मण के समान प्यारे हैं। इनका ('र' और 'म' का) अलग-अलग वर्णन करने में प्रीति बिलगाती है (अर्थात बीज मंत्र की दृष्टि से इनके उच्चारण, अर्थ और फल में भिन्नता दिख पड़ती है), परन्तु हैं ये जीव और ब्रह्म के समान स्वभाव से ही साथ रहने वाले (सदा एक रूप और एक रस),॥2॥
* नर नारायन सरिस सुभ्राता। जग पालक बिसेषि जन त्राता॥
भगति सुतिय कल करन बिभूषन। जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन॥3॥
भावार्थ:-ये दोनों अक्षर नर-नारायण के समान सुंदर भाई हैं, ये जगत का पालन और विशेष रूप से भक्तों की रक्षा करने वाले हैं। ये भक्ति रूपिणी सुंदर स्त्री के कानों के सुंदर आभूषण (कर्णफूल) हैं और जगत के हित के लिए निर्मल चन्द्रमा और सूर्य हैं॥3॥
* स्वाद तोष सम सुगति सुधा के। कमठ सेष सम धर बसुधा के॥
जन मन मंजु कंज मधुकर से। जीह जसोमति हरि हलधर से॥4॥
भावार्थ:-ये सुंदर गति (मोक्ष) रूपी अमृत के स्वाद और तृप्ति के समान हैं, कच्छप और शेषजी के समान पृथ्वी के धारण करने वाले हैं, भक्तों के मन रूपी सुंदर कमल में विहार करने वाले भौंरे के समान हैं और जीभ रूपी यशोदाजी के लिए श्री कृष्ण और बलरामजी के समान (आनंद देने वाले) हैं॥4॥
दोहा :
* एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ।
तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ॥20॥
भावार्थ:-तुलसीदासजी कहते हैं- श्री रघुनाथजी के नाम के दोनों अक्षर बड़ी शोभा देते हैं, जिनमें से एक (रकार) छत्ररूप (रेफ र्) से और दूसरा (मकार) मुकुटमणि (अनुस्वार) रूप से सब अक्षरों के ऊपर है॥20॥
चौपाई :
* समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥
नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी॥1॥
भावार्थ:-समझने में नाम और नामी दोनों एक से हैं, किन्तु दोनों में परस्पर स्वामी और सेवक के समान प्रीति है (अर्थात्‌ नाम और नामी में पूर्ण एकता होने पर भी जैसे स्वामी के पीछे सेवक चलता है, उसी प्रकार नाम के पीछे नामी चलते हैं। प्रभु श्री रामजी अपने 'राम' नाम का ही अनुगमन करते हैं (नाम लेते ही वहाँ आ जाते हैं)। नाम और रूप दोनों ईश्वर की उपाधि हैं, ये (भगवान के नाम और रूप) दोनों अनिर्वचनीय हैं, अनादि हैं और सुंदर (शुद्ध भक्तियुक्त) बुद्धि से ही इनका (दिव्य अविनाशी) स्वरूप जानने में आता है॥1॥
* को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू॥
देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥2॥
भावार्थ:-इन (नाम और रूप) में कौन बड़ा है, कौन छोटा, यह कहना तो अपराध है। इनके गुणों का तारतम्य (कमी-बेशी) सुनकर साधु पुरुष स्वयं ही समझ लेंगे। रूप नाम के अधीन देखे जाते हैं, नाम के बिना रूप का ज्ञान नहीं हो सकता॥2॥
* रूप बिसेष नाम बिनु जानें। करतल गत न परहिं पहिचानें॥
सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें। आवत हृदयँ सनेह बिसेषें॥3॥
भावार्थ:-कोई सा विशेष रूप बिना उसका नाम जाने हथेली पर रखा हुआ भी पहचाना नहीं जा सकता और रूप के बिना देखे भी नाम का स्मरण किया जाए तो विशेष प्रेम के साथ वह रूप हृदय में आ जाता है॥3॥

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All Comments (21)
  • @sonu5075
    कौन तुम देव पुरूष हो अहोभाग्य वाले! एक तो ईतना सुंदर स्वर उस पर प्रभु राम की स्तुति गायन मे रुचि तुम्हारी। हे गायक भाई और हे गायिका बहन! कौन कर्म वा किसके आशीर्वाद से तुमने ये सब पाया। मेरे गुरुजी ईश्वर तुल्य क्षमादायी और दयालु हैं। पर मैं शठ निशिचर बुद्धि वाला। ईश्वर से तुम्हारा जब साक्षात्कार हो तो कहना वे प्रभु मुझे भी सामर्थ्य और अपनी भक्ति दें।
  • प्रतिदिन मैं इस रामचरितमानस रूपी अमृत का रसपान करता हूं। जिस दिन इस रामचरितमानस का श्रवण नहीं करता वह दिन व्यर्थ ही चला जाता है। वो लोग बड़भागी हैं जो मानस रूपी पीयूष को प्राप्त कर रहे हैं।जो लोग इस वीडियो को देखने आए हैं उन सबको श्री राम जी की कृपा प्राप्त हो
  • @Ramdoot1008
    लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये
  • @NamoRashtravad
    जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम रामरामरामरामराम रामरामरामरामराम🙏🙏🙏मुझे तो नाम की महिमा पर ही विस्वास है ।"कहूं कहा लगि नाम बड़ाई ।राम न सकइ नाम गुन गाई।।🙏🙏
  • हे! राम अपने चरणों प्रीति ,देकर अनन्त अपराध को छमा करिए नाथ।।
  • 🍃🍃🍃सीता राम सीता राम🍃🍃🍃 🌹🌹🌸🌸🌷🌷🌸🌸🌹🌹 🍃🍃🍃सीता राम सीता राम🍃🍃🍃
  • जय श्री हरि मायापति नारायण हे मानदा (स्वयं मान न चाहने वाले, दूसरो को मान देने वाले) श्री हरि आपकी महिमा अनंत है आप का मर्म कोई नही जानता बिना आपके जनाये 👏👏👏👏
  • 🌹🌹🙏 सादर जय सिया राम, इतनी मधुर आवाज और राम नाम का गुणगान, अदभुत अति प्रशंसनीय, अकल्पनीय आनंद की प्राप्ति होती है।🙏🌹🌹
  • 🚩🚩 श्री राम मेरे राम🚩🚩🚩 राम नाम सोहि जानिये, जो रमता सकल जहान ! घट घट में जो रम रहा, उसको राम पहचान !! ॐ श्री रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ! रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: !! !! श्री राम शरणम मम: !!
  • जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय राम सीताराम जय-जय सीताराम जय-जय
  • हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे
  • हे प्रभू आपको प्रणाम🙏🌹💐🥭🍏🌿
  • रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीताये पतये नमः।।🙏🚩
  • @abhijitkumarslg
    अति सुंदर । जय सियाराम 🙏🌹🌹🙏
  • @keshavdatt5999
    जय सियाराम | जय बजरंगबली हनुमान जय उमापति महादेव || 🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
  • @vijaypandey220
    " परम भागवत भक्त जन श्रीराम जी के परम पावन नाम महिमा को जब श्रवण करते हैं तब उनकी दशा वैसे ही हो जाता है जैसे स्वाती नक्षत्र में होने वाले बरसात के एक बूंद के लिए चातक पक्षी की होती है। जब ऐसी विकलता अंतःकरण में हो तब भगवान भी अपने चाहने वालों के लिए विकल हो जाते होंगे। क्यों कि ऐसी दशा बिना हरि कृपा के नहीं हो सकती! बड़े सहजता के साथ आप दोनों कलाकारों ने भगवन नाम को स्वर बद्ध तरीके से प्रस्तुत किया है, मुझे बहुत ही आनंद आया ! मैं पूज्य पाद गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज का रिणीं हूं कि उन्होंने घोर कलिकाल में हरि कृपा से एक ऐसी रचना हम सनातनियों को दी है कि आज के मलिन वातावरण में संजीवनी का काम करता रहता है !!" " जय श्री सीताराम "‌🚩🌹💓🙏🙏
  • @user-lc3hr8cp9p
    मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचंद्र कि जय🙏🚩
  • Jay shree ram bhakt hanuman ji 🌹❤️🌹🚩🍎🌿💞🚩🍎🙏